Last modified on 15 अक्टूबर 2017, at 16:37

कैसा है भाई / मनोज जैन 'मधुर'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 15 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसा है भाई
बैठ गया
आँगन में
कुंडलिया मार।
गिरगिट से ले
आया रंग
सब उधार।
हक़ मांगो
दिखलाता
कुआँ कभी खाई।
कैसा है भाई।
चूस रहा
रिश्तों को
बन कर के जोंक।
जब चाहे
बन जाता
चाकू की नोंक।
घूरता है
जैसे
अज को कसाई।
बदला सा
रूप देख
कांप रहा गेह।
लील गया
पुरखों का
जन्मों का नेह।
लेना हो
एक तो
बसूलता अढाई।