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हम सुपारी-से / कुँअर बेचैन

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दिन सरौता

हम सुपारी-से।


ज़िंदगी-है तश्तरी का पान

काल-घर जाता हुआ मेहमान

चार कंधों की

सवारी-से।


जन्म-अंकुर में बदलता बीज

मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़


साँस वाली

रेजगारी-से।

बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान

है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान

दिन जवानी के

बिहारी-से।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।