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मुकाम / प्रयाग शुक्ल

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हम कहीं दूर चले जाते हैं । वापस आते फिर ।

और उस जगह का नाम मालूम नहीं ।

आकाश छ्त नहीं है, एक नीली गहराई में

नहीं, वह फैला हुआ नीला है

जिसका कोई शरीर नहीं । 'मुक़ाम सब उसी मुक़ाम

पर पहुँचते हैं'--फ़ैयाज ने कहा । फिर एक थाप है

शरीर से कुछ ले जाती हुई । हम सब डूब जाते

हैं । अनेकॊं बार मैंने अपने को डूबते हुए

देखा है । फिर वह शरीर वही शरीर नहीं रहता ।


फ़ैयाज= तबला वादक फ़ैयाज खाँ