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मोरपखा मुरली बनमाल / रसखान

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लेखक: रसखान

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मोरपखा मुरली बनमाल, लख्यौ हिय मै हियरा उमह्यो री।

ता दिन तें इन बैरिन कों, कहि कौन न बोलकुबोल सह्यो री॥

अब तौ रसखान सनेह लग्यौ, कौउ एक कह्यो कोउ लाख कह्यो री।

और सो रंग रह्यो न रह्यो, इक रंग रंगीले सो रंग रह्यो री।