भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये दिन बहार के / जोश मलीहाबादी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 21 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचनाकार: जोश मलीहाबादी
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके
कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके
मेरी तबाही दिल पर तो रहम खा न सकी
जो रौशनी में रहे रौशनी को पा न सके
न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री
जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके
रहें ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात जहाँ
मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके
करेंगे मर के बक़ा-ए-दवाम क्या हासिल
जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके
नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने
नई ज़मीं, नया आसमाँ बना न सके