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पांच शे’र / यगाना चंगेज़ी

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शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।

ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया॥


इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।

एक आज-कल में अबस<>व्यर्थ</> दिन गँवायें है क्या-क्या।


ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<>मुनासिब</> है।

वो लगज़िशों पै<>लड़खडा़ने पर</> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥


बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<>कल्पना-बिंदु का</> नाम है काबा।

किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<>खोज के लक्ष्य का</> पता न चला॥


उमीदो-बीमने<>आशा-निराशा</> मारा मुझे दुराहे पर।

कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥



शब्दार्थ
<references/>