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जब कभी मन की बात आती है / प्रेम भारद्वाज
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जब कभी मन की बात आती है आँसुओं की सौग़ात आती है
तन जब उलझेंगे रुह काँपेगी जाम टूटेंगे रात आती है
आपसी रंजिशों के चलते ही गर्दिशे कायनात आती है
साथ सामान मौत का लेकर फिर जगत में हयात आती है
सूख जाता है तन समुन्दर का तब बरसने की बात आती है
काट कितने भी मोह के बंधन भावना रोज़ कात आती है
इस शुमारी पे गौर कर फिर से इसमें तेरी भी ज़ात आती है
रोज़ शह के लिए उलझते हैं रोज़ ख़ुद को ही मात आती है
प्रेम यदि डार-डार होता है वासना पात-पात आती है।