भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपनों का नीड़ / नचिकेता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 27 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} Category:गीत आना मेरी यादों में हर पल तुम आना आ...)
आना
मेरी यादों में
हर पल तुम आना
आना जैसे
सावन में हरियाली आती
अंजुराई आँखों के अन्दर
लाली आती
पाकर
नए बीज में
अंकुर सा अंखुआना
आना जैसे
लहरों में थिरकन आती है
फूलों की पंखुड़ियों में
बू लहराती है
इच्छाओं को
मिल जाता जिस
तरह बहाना
आना जैसे
साँसों में उष्मा आती है
एक छुअन से दस-दो देह
सिहर जाती है
आ मेरे
मन में सपनों के
नीड़ बनाना
आना जैसे
आलस में आती अंगड़ाई
तकिये के खोलों पर उगती
नई कढ़ाई
गालों पर
छलके श्रम-सीकर में
दिख जाना