भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गाती हुई हाथों में ये सिंगर की मशीन / जाँ निसार अख़्तर

Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:रुबाई <poem> गाती हुई हाथों …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाती हुई हाथों में ये सिंगर की मशीन
क़तरों से पसीने के शराबोर जबीन

मसरूफ़ किसी काम में देखूँ जो तुझे
तू और भी मुझको नज़र आती है हसीन