भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादी की तरह दुनिया / नीरज दइया

Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 13 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} <Poem> निरन्तर बीमारी में अधरझू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निरन्तर
बीमारी में अधरझूल
झूल रही है दादी ।
यह झूलना
लगभग ख़त्म ही समझो अब
लेकिन
मन नहीं भरता, दादी का ।

दादी !
क्यों है तुम्हारा
जीये जाने से इतना मोह
अब क्या रह गया है शेष
जबकि तुम्हारे बच्चे तक
नाक-नाक आ गए हैं
अपनी नाक रखते
गली मुहल्ले के भय से

मित्रों !
दादी की तरह
दुनिया भी झूल रही है
अधरझूल !


अनुवाद : मोहन आलोक