भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम का आँसू /आलोक श्रीवास्तव-२

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरयू-तट के जनपदों से लेकर
मुंबई की उजाड़ मिलों तक
भूख और ज़ुल्म का मंज़र था
क़त्लेआम थे

एक आँसू अटका हुआ
चीर नहीं पा रहा था
पाताल

निराला के राम का आँसू
कितना बेबस था!
रामभक्तों की सत्ता
कितनी सर्वजयी!!

7.11.2002


उपरोक्त कवित में हिन्दी के अनेक प्रमुख कवियों की काव्य-पंक्तियाँ इस्तेमाल हुई हैं। उनके प्रति कृतज्ञ है कवि।