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आ कि मेरी जां को क़रार नहीं है / ग़ालिब

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लेखक: गा़लिब

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आ कि मेरी जान में क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तज़ार नहीं है

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा बाअन्दाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है

गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है

हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शक़ की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वा हाये मअनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है

तू ने क़सम मैकशी की खाई है "गा़लिब"
तेरी क़सम क कुछ ऐतबार नहीं है