भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किनकी ध्वनियों को दुहराऊँ / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 12 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी |संग्रह=समर्पण / माखनलाल चतु…)
ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक!
बे जाने जब जब, बजा चुके हो,
जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब,
किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ?
किसका अपमान करूँ?
किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ
हृदय हलाहल-दान करूँ?
आया हूँ मैं नाथ, तुम्हारे कण्ठ कालिमा देने को!
और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।
’’’रचनाकाल: श्री मनोहर पन्त जी का निवास, जबलपुर-१९३२