भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतिप्रेम / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…)
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती
निर्दोष और निर्विकार है जो
किसी भी शरीर में रहे
किसी भी रूप में
किसी के पास
चिंता क्यों होती है उसको लेकर
क्यों होती है शंका अपने अहित की?
हित ही सधा न हो जिससे
कैसे करेगा अहित?
किसी भी शरीर में
किसी भी रूप में
किसी के भी पास रहकर
है तो निर्दोष
है तो निर्विकार
वह कि जिसकी मौत कभी नहीं होती।
रचनाकाल : 1991, विदिशा