भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेघ छाए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 26 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} मेघ छाए स्निग्ध कन्धों प...)
मेघ छाए
स्निग्ध कन्धों पर
असंयत-से कुन्तल
बिखर आए ।
फुहार में भीगा
सोंधी माटी - सा
महका तन,
अँगड़ाई लिये
पोर- पोर में
खिले उपवन।
सतरंगी सपने
काजर की डोर पर
उतर आए ।
हौले से उतरी है
माथे पर
बावरी चांदनी,
मुस्कान बन
अधरों पर करती है
किलोल दामिनी।
सपनीली परीकथा
नयनों में
उभर आए।