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सूरज ज़रा आ पास आ / शैलेन्द्र

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सूरज ज़रा आ पास आ

आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम

अय आसमाँ ! तू बड़ा मेहरबाँ

आज तुझ को भी दावत खिलाएंगे हम


चूल्हा है ठंडा पड़ा

और पेट में आग है

गरमा-गरम रोटियाँ

कितना हसीं ख़्वाब है


आलू टमाटर का साग

इमली की चटनी बने

रोटी करारी सिके

घी उस पे असली लगे !