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सुना है, मित्र को लड़की पसंद आ गई है ! / रवीन्द्र दास

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सुना है, मित्र को लड़की पसंद आ गई है क्योंकि उसके होठ और स्तन और कलर-च्वायस भी - सचमुच अनोखा है। लगातार मिलती रही थी उपलब्धियां पुरस्कार भी लेकिन किसीने भी ठहरकर नहीं दी थी दाद महानगरीय विश्वविद्यालय इतना फैला नेटवर्क इन सपने संजोई आँखों ने बस इतना ही चाहा कि , हजारों मीलों के फासले पर जीवन अपने तरह का भी न हुआ तो अंगार डालिए ऐसी सूचना तंत्र पर !

एक ही जीवन है मेरा -

अंचार डालिए कि मुरब्बा

माँ-बाप के और भी हैं बेटे

कर देंगे पूरी मनोकामना

कितनी बार ही बची है पढ़ाई छूटते-छूटते

मेरा जीवट था कि

मैं यहाँ हूँ

कब किया है इंकार बाप को बाप कहने से

जब कहता हूँ तो शान से

मैट्रो कि किफायती ज़िन्दगी

मल्टी-नेशनल तहज़ीब

और पोस्ट-मॉडर्न तमीज़

किस गंवार बाप ने सिखाई अपनी बेटी को !

मेरा मित्र बड़ा संजीदा है

पिछले सैट बरस में-

नहीं भोग पाया अब्सोल्युट कोस्मोपोलिटन थ्रिल

औरत नहीं है रहस्य

गाँव के पिछवाड़े वाले बगीचे में

चाचियों और चचेरियों को चखा है भरपूर

लेकिन चौराहे के कोनारे पर

नहीं फिसला पाया है हाथ नितम्बों पर

नहीं चूस पाया , सरे-आम , होठों को

तरसता रहा था सनने को 'स्टूपिड' और्तानी आवाज़ में ..........


सो सुना है कि मित्र को लड़की पसंद आ गई है।