भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद की प्रतीक्षा / राकेश खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 25 फ़रवरी 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: राकेश खंडेलवाल

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

धुंध में डूबी हुई एकाकियत बोझिल हुई है
मैं किसी की याद की पल पल प्रतीक्षा कर रहा हूँ

मानसी गहराईयों में अनगिनत हैं जाल डाले
चेतना, अवचेतना के सिन्धु भी मैने खंगाले
आईने पर जो जमी उस गर्द को कण कण बुहारा
सब हटाये गर्भ-ग्रह में जम गये थे जो भी जाले

तीर पर भागीरथी के, आंजुरि में नीर भर कर
जो उठाईं थीं शपथ, उनकी समीक्षा कर रहा हूँ

खोल कर बैठा पुरानी चित्र की अपनी पिटारी
हाथ में थामे हुए हूँ मैं हरी वह इक सुपारी
तोड़ने सौगंध का बाँधा हुआ हर सिलसिला जो
पीठ के पीछे उठा कर हाथ थी तुमने उछारी

कोई भी सन्मुख नहीं है पात्र, फिर भी रोज ही मैं
कल्पना की गोद में कोई सुदीक्षा भर रहा हूँ

एक चितकबरा है, दूजा इन्द्रधनु के रंग वाला
जिन परों को डायरी में है रखा मैने संभाला
हैं उन्हें ये आस कोई उंगलियों का स्पर्श दे दे
तो है संभव देख पायें फिर किसी दिन का उजाला

उत्तरों की माल मुझको प्रश्न से पहले मिली है
फिर न जाने किसलिये देते परीक्षा डर रहा हूँ