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चाँदनी करती चली परिहास / गुलाब खंडेलवाल
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चाँदनी करती चली परिहास
एक मधुकर को जगाया
एक पक्षी सो न पाया
एक नत शेफालि का आँसू धरा पर ढुलक आया
रात में कुछ प्रात का ऐसा हुआ आभास
एक कमल विकच खड़ा था
एक कुमुद मुँदा पड़ा था
एक झोंका वायु का, गति के लिए नभ में अड़ा था
लाज से तीनों गये मर जब कि आयी पास
एक चकवी के खुले पट
एक नभ-दीपक बुझा झट
एक बाला सरित तट पर आ गयी, कटि पर लिए घट
एक विरहिन सो गयी होकर नितांत हतास
चाँदनी करती चली परिहास