भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सलज गुलाबी गालों वाली / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 27 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)
सलज गुलाबी गालों वाली
हाला मेरी चिर सहचर,
बिना मादनी का जग जीवन
बिना चाँदनी का अंबर!
वे कहते हैं विधि वर्जित है
इस जीवन में मदिरा पान!
मुझे सुलभ वह यहाँ, स्वर्ग में
पिएँ मूढ़ अपना अनुमान!