भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बालक की इच्छा / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:25, 1 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मैं अपन…)
मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा ।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा ।।
मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज़ घुमाने जाते हैं ।
पापा जी मेरी ख़ातिर,
कुछ नए खिलौने लाते हैं ।।
मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं ।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं ।।
ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे ।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे ।।
सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है ।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है ।।
मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ ।।
मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ ।।