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बालक की इच्छा / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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मैं अपनी मम्मी-पापा के,
नयनों का हूँ नन्हा-तारा ।
मुझको लाकर देते हैं वो,
रंग-बिरंगा सा गुब्बारा ।।

मुझे कार में बैठाकर,
वो रोज़ घुमाने जाते हैं ।
पापा जी मेरी ख़ातिर,
कुछ नए खिलौने लाते हैं ।।

मैं जब चलता ठुमक-ठुमक,
वो फूले नही समाते हैं ।
जग के स्वप्न सलोने,
उनकी आँखों में छा जाते हैं ।।

ममता की मूरत मम्मी-जी,
पापा-जी प्यारे-प्यारे ।
मेरे दादा-दादी जी भी,
हैं सारे जग से न्यारे ।।

सपनों में सबके ही,
सुख-संसार समाया रहता है ।
हँसने-मुस्काने वाला,
परिवार समाया रहता है ।।

मुझको पाकर सबने पाली हैं,
नूतन अभिलाषाएँ ।
क्या मैं पूरा कर कर पाऊँगा,
उनकी सारी आशाएँ ।।

मुझको दो वरदान प्रभू!
मैं सबका ऊँचा नाम करूँ ।
मानवता के लिए जगत में,
अच्छे-अच्छे काम करूँ ।।