भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Anil Kant (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 6 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया, दर्द की दवा पायी, दर्द बेदवा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया, दर्द की दवा पायी, दर्द बेदवा पाया । हाले-दिल नहीं मालूम लेकिन इस क़दर यानी, हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया । शोरे-पन्दे-नासेह ने ज़ख्म पर नामक छिड़का, आपसे कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया ।