भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 16 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=मार प्यार की थापें / के…)
पानी
पड़ा भँवर में नाचे;
नाव किनारे थर-थर काँपे;
चिड़िया पार गई;
नदिया हार गई।
पाथर पड़े
अगिन दहकाए,
संज्ञा-शून्य
समाधि लगाए;
दुपहर मार गई,
ऐंठ उतार गई।
रचनाकाल: २६-०८-१९७८