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जिस दिन से आए / रमेश रंजक
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जिस दिन से आए
उस दिन से
घर में यहीं पड़े हैं
दुख कितने लंगड़े हैं ?
पैसे,
ऐसे अलमारे से
फूल चुरा ले जायें बच्चे
जैसे फुलवारी से
दंड नहीं दे पाता
यद्यपि-
रँगे हाथ पकड़े हैं ।
नाम नहीं लेते जाने का
घर की लिपी-पुती बैठक से
कम ले रहे तहखाने का
धक्के मार निकालूँ कैसे ?
ये मुझसे तगड़े हैं ।