भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जद हरी करै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:45, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>बूढै बैसाख अर बाळणजोगै जेठ री बाथा में बळी-तपी हरी हूवण री हूंस …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूढै बैसाख
अर
बाळणजोगै जेठ री बाथा में
बळी-तपी
हरी हूवण री हूंस दाब्यां
         सूती धरती

अंग-अंग भीजै
    बा रीझै
मुळकै-गावै
जद हरी करै सावण !