भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राख / शरण कुमार लिंबाले

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 16 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरण कुमार लिंबाले |संग्रह= }} <Poem> प्रिये... मेरे प्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रिये...
मेरे प्रेम का ख़ून होते समय
कोई भी कवि दुख व्यक्त नहीं करेगा
उनकी क़लम पर लगाम डाल दी गई होगी ।

प्रिये...
दंगे-फ़साद में तुझ पर प्रहार होते समय
पराजित फ़ौज की तरह
मैं भी मज़बूर हो जाऊँगा ।

प्रिये...
हमारी झोपड़ियों को आग लगाने पर
हम जलते रहते हैं
अनाथ और बेवारिस अपने पिता की तरह ही ।

प्रिये...
तू आ घनघोर युद्ध क्षेत्र की तरह
बेकाबू ।

मेरी राख देश के बाहर फेंक देने के लिए
यहाँ के तीर्थक्षेत्र अपवित्र न हों
इसलिए ।

मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित