भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारूंमास होळी / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:40, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आखर री आँख सूं / सांवर दइया }} [[Ca…)
सूरज तो
रसियो जबरो
खेलै होळी
बारूंमास
भाख फाटतां ई
मारै पिचकारी
सिंदूरी किरणां री
दुनियां रै मूंडै
चमक परा जागै
सूत्योड़ा लोग
मुळकै सूरज
हाथ में लियां पिचकारी
नूंतै-
आवो, खेलां होळी !