भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आवाज़ / रतन सिंह ढिल्लों
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन सिंह ढिल्लों |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं तुझे नद…)
मैं तुझे
नदी के इस किनारे से
आवाज़ दे रहा हूँ
तू नदी के दूसरे किनारे
मेरी तरफ
पीठ करके खड़ी है
काश!
तेरी पीठ पर उग आतीं आँखें
पुल बन सकती मेरी आवाज़ ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला