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क्रांति / रतन सिंह ढिल्लों

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क्राँति की गोलियाँ हैं
इनका
कोई मोल नहीं है

केवल शर्त है
अपने वस्त्र उतार दो
और हिम हो चुके
ख़ून को पिघलाने के लिए
होठों पर एक
सिगरेट सुलगा लो ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला