भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / वंदना केंगरानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:44, 4 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वंदना केंगरानी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मुझे मालूम ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे मालूम है
तुम उल्लू बना रहे हो मुझे

उल्लू बनने में
एक फ़ायदा है
विश्वास बचा रहता है

मैं भी
इस समय
विश्वास बचाने की कोशिश में लगी हुई हूँ
क्या ग़लत कर रही हूँ !