भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कलम / रेशमा हिंगोरानी

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 18 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> बड़ी मुद्दत क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी मुद्दत के बाद आज फिर उठी है कलम,
और सूखी थी सियाही जो, मुस्कुराई है!

मगर है फिर भी बेबसी ऎसी…
वो सभी कुछ जो कहना चाहा सदा,
आज कागज़ पे उतारूँ कैसे?

ख़याल उड़ रहे हैं दूर बादलों में कहीं,
टिके हुए हैं मगर अश्क तो वहीं के वहीं,
पलक झुकाऊँ तो,
इनको भी खो न जाऊँ कहीं...
अब इस कलम को टिकाना होगा,
सुनहरे ख़्वाब भुलाना होगा,
एक अर्से से जो हैं जाग रहीं,
अब इन आँखों को सुलाना होगा!