भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश हमारा / मनमोहन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:37, 21 मई 2011 का अवतरण
देश हमारा कितना प्यारा
बुश की भी आँखों का तारा
डंडा उनका मूँछें अपनी
कैसा अच्छा मिला सहारा
मूँछें ऊँची रहें हमारी
डंडा ऊँचा रहे तुम्हारा
ना फिर कोई आँख उठाए
ना फिर कोई आफत आए
बम से अपने बच्चे खेलें
दुनिया को हाथों में लेलें
भूख गरीबी और बेकारी
ख़ाली -पीली बातें सारी
देश-वेश और जनता-वनता
इन सबसे कुछ काम न बनता
ज्यों-ज्यों बिजिनिस को चमकाएँ
महाशक्ति हम बनते जाएँ
हम ही क्यों अमरीका जाएँ
अमरीका को भारत लाएँ
झुमका ,घुँघटा,कंगना,बिंदिया
नबर वन हो अपना इंडिया
हाईलिविंग एण्ड सिम्पिल थिंकिंग
यही है अपना मोटो डार्लिंग
मुसलमान को दूर भगाएँ
कम्युनिस्ट से छुट्टी पाएँ
अच्छे हिन्दू बस बच जाएँ
बाकी सारे भाड़ में जाएँ ।