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पोखरन-1 / नील कमल

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हँसो, बुद्ध हँसो
तुम्हारी मुस्कुराहट में
सिकते को बारूद कर देने की अदा
मुग्ध कर रही है जन-जन को
उन्हें महाबलियों की सभा में
अपना कद ऊँचा दिखने लगा है
हँसी के जवाब में
आमलेट तैयार हो चुका है
चगाई की पहाड़ियों पर ।