भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी मरने से घबराती भी है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:53, 17 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)
ज़िन्दगी मरने से घबराती भी है
चढ़के शोलों पे कभी गाती भी है
बेसुधी रुकने नहीं देती हमें
जब कोई मंजिल नज़र आती भी है
यों तो मरती ही रही है ज़िन्दगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
कुछ तो कहती हैं तेरी खामोशियाँ
जब नज़र मिलती है, शरमाती भी है
रोज़ खिलते हैं उन आँखों में गुलाब
दिल में पर खुशबू पहुँच पाती भी है!