भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वसीयत / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:22, 28 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गहराईयों में डूबते महासागर !
हाँफती बदलियाँ !
आकाश के माथे की शिकन !
गये हुए वसन्त की वापसी के नाम !

मेले में भटके हुए शिशु से
दिवस-मास-वर्ष
न बोलने की सौगन्ध खाकर बैठ माटी ।
बाँसुरी के आकुल रंध्र ।
सिवानों की साँझ ।
नये गीत और नई ज़िन्दगी के नाम !

सुबह की कच्ची धूप ।
दूब के होठों पर कुनमुनाती शबनम ।
नम-रेतीली घाटियाँ ।
अस्थिर-अनिश्चित दिशायें
शास्वत गतिशील पाँवों के नाम !
(१९६३)