भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गिलहरी / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> लटकी ह…)
लटकी हुई हैं
बर्फ़ सी गिलहरियाँ
मेरे वजूद की
यहाँ।
डरी-डरी
सहमी सी
थामे टहनियाँ।
उल्टी लटकी हुई फाँस
एक दिन
काल बन जाएगी।