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धीरे धीरे / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
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धीरे-धीरे
घर करती जाती हैं
सम्पदाएँ
पोर-पोर
रग-रग और
स्पन्दन में भी।
भूल जाता है
रिश्ते आदमी
नहीं रह पाता
वह अपनी
माँ की कांख से
बँधा शिशु
बालक होने के बाद।