भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ-2 / राजूरंजन प्रसाद

Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:49, 1 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद |संग्रह= }} <poem> मैंने कहा--दुख और म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने कहा--दुख
और माँ का चेहरा म्लान हो गया
शिथिल पड़ने लगीं देह की नसें
कहां रही ताक़त
जवान गर्म खून की
दौड़ता फिरे जो
अश्वमेध के घोड़े-सा
मैंने कहा--मां
और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
(9.7.01)