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बरवै रामायण/ तुलसीदास / पृष्ठ 14

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( बरवै रामायण उत्तरकांण्ड/पृष्ठ-4)


( पद 61 से 65 तक)

सुमिरहु नाम राम कर सेवहु साधु।
तुलसी उतरि जाहु भव उदधि अगाधु।61।

कामधेनु हरि नाम कामतरू राम।
तुलसी सुलभ चारि फल सुमिरत नाम। 62।

 तुलसी कहत सुनत सब समुझत कोय।
बड़े भाग अनुराग राम सन होय।63।

एकहि एक सिखावत जपत न आप।
तुलसी राम प्रेम कर बाधक पाप। 64।

मरत कहत सब सब कहँ सुमिरहु राम।
 तुलसी अब नहिं जपत समुझि परिनाम।65।

(इति बरवै रामायण उत्तरकांण्ड/पृष्ठ 4)


(इति बरवै रामायण उत्तरकांण्ड/ पृष्ठ 4)

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