भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरयू नदी / रवि प्रकाश
Kavita Kosh से
Ravi prakash (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: मेरा समग्र अकेलापन सरयू के तीरे एक पत्थर में कैद है ! जिसकी आजादी …)
मेरा समग्र अकेलापन
सरयू के तीरे
एक पत्थर में कैद है !
जिसकी आजादी की शर्त
सरयू अपने साथ समंदर में बहा ले गई
और मुझे अकेला छोड़ गई !
मैं आज भी वहीँ तीरे पर बैठा हूँ !
सरयू मेरा पांव तुम्हारे सीने मैं है,
फिर भी तुम बहे जा रही हो !
मुझे अपने सीने में लो सरयू
थोड़ी देर रुको ,सुनो सरयू
मैं वही,तुम्हारी रेत का बंजारा हूँ !
सरयू एक बार मेरे सीने में बहो
और तोड़ दो मेरी चुप्पी को !