भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिलन / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:00, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रजनी अनुरागी |संग्रह= बिना किसी भूमिका के }} <Poem> म…)
मिलते हो जब तुम
खिल जाता है मन
छूते हो जैसे ही तन
भीतर से उठती है सिहरन
हम और मनुष्य हो जाते हैं
जब होता है मिलन