भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस्ती अजीब / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी अजीब है बस्ती यह
भाषा कहते हैं जिसे :
हर शब्द जहाँ परिचित लगता है
                            मुझे
दूर से ही लेकिन
पास जब जाता हूँ उस के
वह कोई और निकलता है
उदासीन मुझ से
कभी कोई मुस्कराता हुआ
                     मेरे भरोसे पर
कि उसको जानता हूँ मैं ;
कभी वह ख़ुद नहीं होता
                  परिचय अपना
अन्य में ही अपना परिचय
                    दे पाता है—
अन्य के पास जो जाऊँ
उस से और अन्य का
इंगित ही पाऊँ

दर-दर भटक रहा हूँ मैं
जाने कब से
इस बस्ती में पा लेने
                अपना घर !

31 जनवरी 2010