भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विदा / नाथूराम शर्मा 'शंकर'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:09, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> साँच...' के साथ नया पन्ना बनाया)
साँची मान सहेली परसों,
पीतम लैवे आवेगो री!
मात-पिता भाई-भौजाई, सबसों राख सनेह-सगाई,
दो दिन हिल-मिल काट यहाँ से-फिर को तोहि पठावेगी री!
अबको छेता नाहिं टरेगो, जानों पिय के संग परेगो,
हम सब को तेरे बिछुरन को दारुण शोक सतावेगी री!
च्लने की तैयारी करले, तोशा बाँध गैल को धरले,
हालाहाल बिदा लों पीहर वारे, रोवत संग चलेंगे सारे,
‘शंकर’ आगे-आगे तेरो-डोला मचकत जावेगी री!