भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़र्क़ / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह=चीज़ें उपस्थित हैं / नीलाभ }} क्या है जो क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या है जो कुतरता रहता है--

चूहे की तरह

धीरे-धीरे अदृश्य

-- दिनों के रेशे ?


पीले पत्ते गिरते रहते हैं

नि:शब्द एक-दूसरे पर

तह-दर-तह, वर्ष-दर-वर्ष

कि फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है

एक को दूसरे से


यह समय है--तुम कहते हो

यह अकर्मण्यता है--मैं कहता हूँ


(रचनाकाल : 1975)