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कायनात-३ /गुलज़ार
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बहुत बौना है ये सूरज ....!
हमारी कहकशाँ की इस नवाही सी 'गैलेक्सी'में
बहुत बौना सा ये सूरज जो रौशन है...
ये मेरी कुल हदों तक रौशनी पहुँचा नहीं पाता
मैं मार्ज़ और जुपिटर से जब गुजरता हूँ
भँवर से,ब्लैक होलों के
मुझे मिलते हैं रस्ते में
सियह गिर्दाब चकराते ही रहते हैं
मसल के जुस्तजु के नंगे सहराओं में वापस
फेंक देते हैं
जमीं से इस तरह बाँधा गया हूँ मैं
गले से ग्रैविटी का दायमी पट्टा नहीं खुलता !