भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वासोख़्त / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 7 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |संग्रह=ज़िन्दा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच है, हमीं को आपके शिकवे बजा न थे
बेशक, सितम जनाब के सब दोस्ताना थे

हाँ, जो जफ़ा भी आपने की क़ायदे से की
हाँ, हम ही कारबंदे-उसूले-वफ़ा न थे

आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे

क्यों दादे ग़म हमीं ने तलब की, बुरा किया
हमसे जहाँ में कुश्तये-ग़म और क्या न थे

गर फ़िक्रे-जख़्म की तो ख़तावार हैं कि हम
क्यों मह्वे-मद्हे-ख़ूबी-ए-तेग़े-अदा न थे

हर चारागर को चारागरी से गुरेज़ था
वरना हमें जो दुख थे, बहुत ला-दवा न थे

लब पर है तल्ख़िए-मय-ए-अय्याम, वरना 'फ़ैज़'
हम तल्ख़ि-ए-कलाम पे माइल ज़रा न थे