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त्रिशंकु / पूजानन्द नेमा
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आज के बच्चे
बढ़ी डाढ़ी लिए जन्म लेते हैं
आँखों में उन की
बुजुर्ग ने सवाल भरे होते हैं
…….और गुरुजी ?
भगवान की कविता में
फेनिल लहरों के प्रवेश-द्वार पर
मरकत और नील-मणि सदृश्य
बहुमूल्य रत्न पाकर
संसार के
सबसे बड़े विश्वविद्यालय में
याने माँ की गोद में
बौना बन
मार्न-द्वीप की तरह
पुनः जा बैठे हैं ।
चटकती धूप में
खेती अपनी झुलस रही है
और अलमस्त मास्टर जी !
डकारों की डकार लेकर
अपनी ही खटास को सूँघ-सूँघ
नाद-निनाद भरी तोंद पर
हाथ फेरने बैठे हैं ।
एक सैलाब
जंगलों में बहे जा रहा है
पर खेत में अपने अंजली भर पानी देना
कल वह भूल गए थे
आज बदहज़मी की जद्दो-जेहद में
कुछ याद नहीं
और कल की
कल पर है
अतः आज ही
वह कफन ओढ़ बैठे हैं ।