भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यस्तता / सलिल तोपासी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:48, 12 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सलिल तोपासी }} {{KKCatMauritiusRachna}} <poem> हाथों क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हाथों की ऊँगलियों को डबोचते हुए
लटके इस डर से कि कहीं टूट न जाए
रंग-बिरंगी थैलियाँ
अपने आपको कभी खुशनसीब
तो कभी संतुष्ट समझकर
कारण और क्या है?
किसी में महेंगे तो किसी में सस्ते सामान
वे सामान जो गरीबों और गरीब खानों
अमीरों और महलों की
सजावट के लिए
अपने अस्तित्व को रूप देंगे अकसर
उन बेघरों और अनाथों को भूलना
एक आदत सी बन गयी है।