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बचत / वशिष्ठ कुमार झमन
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वेतन मिलता है माहांत में
तो सांस ले लेता हूँ
कुछ पैसे किसी किताब में
कुछ अलमारी में पड़ी
किसी पुरानी कमीज़ में
रख देता हूँ
छुपा लेता हूँ
चोर की भांति
नहीं खरीदता
लिक्विड या पीस के कपड़े
मुँह में आए पानी को पीकर
गुज़र जाता हूँ
मेक्डोनल्ड के सामने
पता भी नहीं चला था
कबसे बन गया दिमाग मेरा अर्थशास्त्री
लगा लेता है जो
कीमत मन की हर इच्छा की
पर बचा नहीं पाता मुझको
उस बड़े अर्थशास्त्री की साज़िशों से
हर दूसरे तीसरे सप्ताह
झार लेता हूँ
हर कमीज़ की जेब
छाँट लेता हूँ हर किताब
और हर बार
मेरा खाली बटवा
अपना बड़ा सा मुँह खोले
मेरा मज़ाक उड़ाता है !