भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विपर्यय / मार्कण्डेय प्रवासी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 3 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मार्कण्डेय प्रवासी }} {{KKCatNavgeet}} {{KKCatMaithil...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चोरो पबैये-
साधुक प्रणाम !
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!

नामी लुटेरा रखबार अछि
बटमार डाकू घटबार अछि
सगरो लगईयै विश्वास वाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!

व्यभिचार बनि गेल आचार अछि
व्यवसाय सेवाक संसार अछि
उजड़ल लगैए निष्ठाक गाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!

बदलल लगैए कविता-कथा
परसल लगैए अगबे व्यथा!
झूठो बिकैए साँचेक दाम!
श्री राम! जय राम जय-जय राम!!